Gulf Countries Without Oil (जीवाश्म ईंधन के बाद क्या करेंगे खाड़ी देश )

क्या अपने कभी सोचा है की Gulf countries without oil (जीवाश्म ईंधन के बाद क्या करेंगे खाड़ी देश) क्या होगा तो आइये जानते है। दुनिया के खाड़ी देश तेल बेचकर मालामाल होने के साथ इन दिनों एक नई समस्या से जूझ रहे हैं. यूरोप, एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के ज्यादातर देश अब जीवाश्म ईंधन यानी fossil fuel (जीवाश्म ईंधन) की जगह रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं. ऐसे में अगर खाड़ी देश तेल निर्यात करना जारी रखते हैं, तो उनका खजाना भर जाएगा, लेकिन इससे उनके अस्तित्व को भी खतरा हो सकता है. जैसे-जैसे अन्य देश सऊदी अरब और उसके पड़ोसियों से निकाले गए जीवाश्म ईंधन को जलाते रहेंगे, वैश्विक तापमान में वृद्धि जारी रहेगी. इस तापमान वृद्धि के असर से खाड़ी देश बहुत अधिक प्रभावित होंगे.

Fossil Fuel (जीवाश्म ईंधन) से दूरी क्यों बना रहे देश ?

दुनिया के बहुत सारे देश जीवाश्म ईंधन  (Fossil Fuel) से दूरी क्यों बना रहे है? इसका जवाब है ग्लोबल वार्मिंग. एक्सपर्ट्स के अनुसार जीवाश्म ईंधन का ग्लोबल वार्मिंग में बड़ा योगदान है. इसकी वजह से तापमान बढ़ रहा है और असंतुलन पैदा हो गया है. पर्यावरण को तो नुकसान हो ही रहा है. यह भी जान ले कि कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जीवाश्म ईंधन के दायरे में आते हैं.

रिपोर्ट्स की माने तो वर्ष 2050 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की वैश्विक वृद्धि का मतलब है कि खाड़ी देशों में 4 डिग्री की वृद्धि होगी. इन क्षेत्रों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका है और यहां का औसत तापमान दुनिया के बाकी हिस्सों से काफी ऊपर है.

इस बात की भी संभावना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से खाड़ी के अधिकांश हिस्सों में गर्मियों में औसत तापमान इतना अधिक हो सकता है कि लोगों का रहना मुश्किल हो जाएगा. धरती के गर्म होने से धूल भरी आंधियां भी बढ़ेंगी और समुद्र का जलस्तर बढ़ने से निचले इलाके प्रभावित हो सकते हैं. ट्रुबी ने कहा, “वे विरोधाभास में हैं, क्योंकि वे तेल से मिलने वाले राजस्व पर निर्भर हैं, लेकिन उन्हें अपने देश में जलवायु परिवर्तन का भी बड़ा खतरा है.”

Gulf Countries List

25-26 मई, 1981 को अबु धाबी (संयुक्त अरब अमीरात) में छह खाड़ी देशों के अध्यक्षों ने परिषद के संविधान पर हस्ताक्षर किए। इस प्रकार खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) अस्तित्व में आई। जब खाड़ी देशों की बात की जाती है तो इसमें मुख्यतः कुवैत, ओमान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और बहरीन को शामिल किया जाता है।

खाड़ी देश अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि, इस बात की बहुत कम संभावना है कि वे निकट भविष्य में जीवाश्म ईंधन का निर्यात बंद कर देंगे.

Renewable Energy

 

अक्षय उर्जाऊर्जा का ऐसा विकल्प है जो असीम (limitless) है। ऊर्जा का पर्यावरण से सीधा सम्बन्ध है। ऊर्जा के परम्परागत साधन (कोयला, गैस, पेट्रोलियम आदि) सीमित मात्रा में होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिये बहुत हानिकारक हैं। दूसरी तरफ ऊर्जा के ऐसे विकल्प हैं जो पूरणीय हैं तथा जो पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुंचाते।

पूरी दुनिया अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की दिशा में आगे बढ़ रही है. ऐसे में यह वैश्विक बदलाव खाड़ी क्षेत्र के लिए आर्थिक तौर पर खतरे की घंटी लग सकता है. वजह यह है कि यहां जीवाश्म ईंधन का भंडार है और इसी भंडार के सहारे इस इलाके की अर्थव्यवस्था की चमक बनी हुई है. हालांकि, अब ये देश भी ऊर्जा के स्रोत में हो रहे बदलाव को स्वीकार कर रहे हैं.

Gulf Countries Without Oil

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर जैसे देश दुनिया के कुछ सबसे बड़े अक्षय ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण कर रहे हैं, क्योंकि वे खुद को जीवाश्म ईंधन से दूर कर रहे हैं. 2022 में हुए फीफा विश्व कप से पहले, कतर ने देश की 10 फीसदी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सोलर पावर प्लांट स्थापित किया.

वहीं, सऊदी अरब एक रेगिस्तानी शहर बना रहा है जो विशेष रूप से अक्षय ऊर्जा से संचालित होगा. इस शहर का नाम नियोम है. यहां सौर ईंधन वाला ग्रीन-हाइड्रोजन प्लांट होगा. इस साल के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन की मेजबानी कर रहा यूएई कथित तौर पर दुनिया का सबसे बड़ा सिंगल-साइट सौर ऊर्जा संयंत्र का निर्माण कर रहा है.

दोनों देशों के मुताबिक, इस तरह की परियोजनाओं से सऊदी अरब को 2030 तक अक्षय ऊर्जा से अपनी जरूरत की 50 फीसदी बिजली पाने के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी. वहीं, संयुक्त अरब अमीरात 2050 तक अक्षय ऊर्जा की मदद से अपनी जरूरत की 44 फीसदी बिजली पैदा कर सकेगा.

फिलहाल, सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, ओमान, कुवैत और कतर दुनिया के उन शीर्ष 15 देशों में शामिल हैं जो सबसे ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन करते हैं. इस सूची में सबसे ऊपर कतर है. यहां 2021 में प्रति व्यक्ति 35.59 टन सीओ2 का उत्सर्जन हुआ जबकि जर्मनी में प्रति व्यक्ति 8.09 टन सीओ2 का उत्सर्जन हुआ.

इन देशों को स्थिति सुधारने के लिए तेजी से काम करना होगा. कतर यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के रिसर्च एसोसिएट प्रोफेसर मोहम्मद अल-सैदी ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह क्षेत्र अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है.

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